खाली हाथ

मन करता है

रोज़ कुछ नया लिखूॅं

किन्तु न मन सम्हलता है

न अॅंगुलियाॅं साथ देती हैं

विचारों का झंझावात उमड़ता है

मन में कसक रहती है

लौट-लौटकर

वही पुरानी बातें

दोहराती हैं।

 नये विचारों के लिए

जूझती हूॅं

अपने-आपसे बहसती हूॅं

तर्क-वितर्क करती हूॅं

नया-पुराना सब खंगालती हूॅं

और खाली हाथ लौट आती हूॅं।