मन के रंग
डालियों से छिटक-कर
बिखर गये हैं
धरा पर ये पुष्प
शायद मेरे ही लिए।
सोचती हूॅं
हाथों में समेट लूॅं
चाहतों में भर लूॅं
रंगों से
जीवन को महका लूॅं
इससे पहले
कि ये रंग बदल लें
क्यों न मैं इनके साथ
अपने मन के रंग बना लूॅं।
डालियों से छिटक-कर
बिखर गये हैं
धरा पर ये पुष्प
शायद मेरे ही लिए।
सोचती हूॅं
हाथों में समेट लूॅं
चाहतों में भर लूॅं
रंगों से
जीवन को महका लूॅं
इससे पहले
कि ये रंग बदल लें
क्यों न मैं इनके साथ
अपने मन के रंग बना लूॅं।