अपने बारे में क्या लिखूं। डा. रघुवीर सहाय के शब्दों में ‘‘बहुत बोलने वाली, बहुत खाने वाली, बहुत सोने वाली’’ किन्तु मेरी रचनाएं बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं, बहुत बोलने वालीं
भोर की रंगीनीयाॅं मदमाती हैं
सूर्य रश्मियाॅं मन भरमाती हैं
सुहाना दिन आया जीवन में
भावों की कलियाॅं शरमाती हैं