समय ने बदली है परिवार की परिल्पना
समय ने बदली है परिवार की परिल्पना, रक्त-सम्बन्ध बिखर गये
जहां मिले अपनापन, सुख-दुख हो साझा, वहीं मन-मीत मिल गये
झूठे-रूठे-बिगड़े सम्बन्धों को कब तक ढो-ढोकर जी पायेंगे
कौन है अपना, कौन पराया, स्वार्थान्धता में यहां सब बदल गये