मैं भी तो

यहां

हर आदमी की ज़ुबान

एक धारदार छुरी है

जब चाहे, जहां चाहे,

छीलने लगती है

कभी कुरेदने तो कभी काटने।

देखने में तुम्हें लगेगी

एकदम अपनी सी।

विनम्र, झुकती, लचीली

तुम्हारे पक्ष में।

लेकिन तुम देर से समझ पाते हो

कि सांप की गति भी

कुछ इसी तरह की होती है।

उसकी फुंकार भी

आकर्षित करती है तुम्हें

किसी मौके पर।

उसका रंग रूप, उसका नृत्य _

बीन की धुन पर उसका झूमना

तुम्हें मोहने लगता है।

तुम उसे दूध पिलाने लगते हो

तो कभी देवता समझ कर

उसकी पूजा करते हो।

यह जानते हुए भी

कि मौका मिलते ही

वह तुम्हें काट डालेगा।

और  तुम भी

सांप पाल लेते हो

अपनी पिटारी में।