मन हुलसा मन बहका
मन हरषा ।।
फिर भी नयनों से नीर
क्यों है बरसा
मन भीगा, तन भीगा
घटा छाई
बूंद बूंद धरती पर आई
पत्तों पर ठिठकी
कोने में अटकी
अब गिरती, तब गिरती
माणिक सी चमकी
धरती पर धारा बहती
मन हुलसा, मन बहका
सरस सरस सा
मन हरषा ।।
मन हरषा ।।
फिर भी नयनों से नीर
क्यों है बरसा
मन भीगा, तन भीगा
घटा छाई
बूंद बूंद धरती पर आई
पत्तों पर ठिठकी
कोने में अटकी
अब गिरती, तब गिरती
माणिक सी चमकी
धरती पर धारा बहती
मन हुलसा, मन बहका
सरस सरस सा
मन हरषा ।।