मन भटकता है यहां-वहां
अपने मन पर भी एकाधिकार कहां
हर पल भटकता है देखो यहां-वहां
दिशाहीन हो, इसकी-उसकी सुनता
लेखन में बिखराव है तभी तो यहां
अपने मन पर भी एकाधिकार कहां
हर पल भटकता है देखो यहां-वहां
दिशाहीन हो, इसकी-उसकी सुनता
लेखन में बिखराव है तभी तो यहां