तीर खोज रही मैं

गहरे सागर के अंतस में

तीर खोज रही मैं।

ठहरा-ठहरा-सा सागर है,

ठिठका-ठिठका-सा जल।

कुछ परछाईयां झलक रहीं,

नीरवता में डूबा हर पल।

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चकित हूं मैं,

कैसे द्युतिमान जल है,

लहरें आलोकित हो रहीं,

तुम संग हो मेरे

क्या यह तुम्हारा अक्स है?