चालें चलते
भेड़ें अब दिखती नहीं
भेड़-चाल रह गई है।
किसके पीछे
किसके आगे
कौन चल रहा
देखने की बात
रह गई है।
भेड़ों के अब रंग बदल गये
ऊन उतर गई
चाल बदल गई
पहचान कहां रह गई है।
किसके भीतर कौन सी चाल
कहां समझ रह गई है।
चालें चलते, बस चालें चलते
समझ-बूझ कहां रह गई है।