कब उससे आंखें चार हुईं थीं याद करूं वे दिन
कब उससे आंखें चार हुईं थीं, याद करूं वे दिन
दिखने में भोला-भाला लगता था कैसे थे वे दिन
चिट्ठी पर चिट्ठी लिखता था तब ऐसे थे वे दिन
नागपुर से शिमला आता था भाग-भागकर कितने दिन
तब हंस-हंस मिलता था, आफिस से बंक मार कर
पांच रूपये का सूप पिलाकर बिताता था पूरा दिन
तीन दशक पीछे की यादें अक्सर क्यों लाता है मन
याद करूं जब,तो कहता अब तू दिन में तारे गिन
अब कहता है जा चाय बना और बना साथ चिकन