उतरना होगा ज़मीनी सच्चाईयों पर
कभी था समय जब जनता जागती थी साहित्य की ललकार से
आज कहां समय किसी के पास जो जुड़े किसी की पुकार से
मात्र कलम से नहीं बदलने वाली अब समाज की ये दुश्वारियां
उतरना होगा ज़मीनी सच्चाईयों पर आम आदमी की पुकार से
कभी था समय जब जनता जागती थी साहित्य की ललकार से
आज कहां समय किसी के पास जो जुड़े किसी की पुकार से
मात्र कलम से नहीं बदलने वाली अब समाज की ये दुश्वारियां
उतरना होगा ज़मीनी सच्चाईयों पर आम आदमी की पुकार से