“आपने “कुच्छछ” किया है क्या”
आज बहुत परेशान, चिन्तित हूं, दुखी हूं वह जिसे अंग्रेज़ी में कहते हैं Hurt हूं।
पूछिए क्यों ?
पूछिए , पूछिए।
जले पर नमन छिड़किए।
हमारी समस्या का आनन्द लीजिए।
ऐसा सुनते हैं कि दो-तीन या चार दिन पहले कोई हिन्दी दिवस गुज़र गया। यह भी सुनते हैं कि यह गुज़र कर हर वर्ष वापिस लौट आता है और मनाया भी जाता है। बहुत वर्ष पहले जब मै शिमला में थी तब की धुंधली-धुंधली यादें हैं इस दिन के आने और गुज़रने की। फेसबुक ने तो परेशान करके रख दिया है। जिसे देखो वही हिन्दी दिवस के कवि सम्मेलन में कविता पढ़ रहा है, कोई सम्मान ले रहा है कोई प्रतीक चिन्ह लेकर मुझे चिढ़ा रहा है, किसी की पुस्तकों का विमोचन हो रहा है, किसी पर ‘‘हार’’ चढ़ रहे हैं तो कोई सीधे-सीधे मुझे अंगूठा दिखा रहा है। यहां तक कि विदेशी धरती पर भी हिन्दी का दिन मनाया जा रहा है।
हं हं हं हं !!
ऐसे थोड़े-ई होता है।
हमारे साथ तो सदा ही बुरी रही।
इस बहाने कुछ चटपटी यादें।
बड़ी शान से पीएचडी करते रहे और बैंक में क्लर्क बन बैठे। हमसे पहले ही हमारी चर्चा हमारी फ़ाईल से बैंक में पहुंच चुकी थी। मेरी पहचान हुई ‘‘हिन्दी वाली ’’।
यह कथा 1980 से 2000 के बीच की है।
हिन्दी भाषा और साहित्य मुझे विद्यालय से ही अच्छा लगता था। मेरा उच्चारण स्पष्ट था, हिन्दी बोलना भी मुझे पसन्द था। अध्ययन के साथ मेरी शब्दावली की क्षमता भी बढ़ी और मेरी हिन्दी और भी अच्छी होती गई।
पहली घटना मेरे साथ कुछ ऐसे घटी। कुछ परिचित-अपरिचित मित्रों के साथ बैठी थी। बातचीत चल रही थी। एक युवक मेरी ओर बड़े आश्चर्य से देख रहा था। मैं कुछ सकपका रही थी। अचानक वह युवक सबकी बात बीच में रोककर मुझे सम्बोधित करते हुए बोला
“आपने “कुच्छछ” किया है क्या” ?
हम घबराकर उठ खड़े हुए, ...........30 साल तक...... इश्क-मुहब्बत तो करनी नहीं आई शादी हुई नहीं, इन्होंने हमारी कौन-सी चोरी पकड़ ली ? मैंने तो कोई अपराध, हत्या, चोरी-डकैती नहीं की।
मैं चौंककर बोली, “मैंने क्या किया है”!
वह बोला “नहीं-नहीं, मेरा मतलब आपने हिन्दी में “कुच्छ्छ“ किया है क्या ?
आह ! जान में जान आई। मैं बहुत रोब से बोली, जी हां मैंने हिन्दी में एम.ए.,एम.फ़िल की है, पी.एच.डी.कर रही हूं।
“तभ्भ्भी, आप इतनी हिन्दी मार रही हैं।“
सब खिलखिलाकर हंस पड़े,
अरे ! इसकी तो आदत ही है हिन्दी झाड़ने की। हमें तो अब आदत हो गई है।
धीरे-धीरे मैं “हिन्दीवाली” होती गई। सदैव अच्छी, शुद्ध हिन्दी बोलना मेरा पहला अपराध था।
मेरा दूसरा अपराध था कि मैंने “हिन्दीवाली” होकर भी हिन्दी के क्षेत्र में नौकरी नहीं की। जिसने हिन्दी में “कुच्छछ” किया है उसे केवल हिन्दी अध्यापक, प्राध्यापक, हिन्दी अनुवादक अथवा हिन्दी अधिकारी ही होना चाहिए।
उसे हिन्दी का सर्वज्ञ भी होना चाहिए। हिन्दी के प्रत्येक शब्द का अर्थ ज्ञात होना चाहिए और एक अच्छा अनुवादक भी।
शब्दकोष से अंग्रेज़ी के कठिनतम शब्द ढूंढकर लाये जाते और मुझसे उनका अर्थ पूछा जाता। मैं जब यह कहती कि मुझे नहीं पता तो सामूहिक तिरस्कारपूर्ण स्वर होता था ‘‘हं, फिर आपकी पी. एच. डी. का क्या फ़ायदा’’
हमारा हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में कार्य करना, लेखन, सब भाड़ में , बस ''बेचारी ''
ऐसी स्थिति में हम एक दया का पात्र होते हैं, ''बेचारी '' । पूरे बीस वर्ष यह torcher भुगता और आज भी भोग रही हूं।