हादसा

यह रचना मैंने उस समय लिखी थी जब 1987 में चौधरी चरण सिंह की मृत्यु हुई थी और उसी समय लालडू में दो बसों से उतारकर 43 और 47 सिखों को मौत के घाट उतार दिया था।)

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भूचाल, बाढ़, सूखा।

सामूहिक हत्याएं, साम्प्रदायिक दंगे।

दुर्घटनाएं और दुर्घटनाएं।

लाखों लोग दब गये, बह गये, मर गये।

बचे घायल, बेघर।

 

प्रशासन निर्दोष। प्राकृतिक प्रकोप।

खानदानी शत्रुता। शरारती तत्व।

विदेशी हाथ।

 

सरकार का कर्त्तव्य

आंकड़े और न्यायिक जांच।

पदयात्राएं, आयोग और सुझाव।

चोट और मौत के अनुसार राहत।

 

विपक्षी दल

बन्द का आह्वान।

फिर दंगे, फिर मौत।

 

सवा सौ करोड़ में

ऐसी रोज़मर्रा की घटनाएं

हादसा नहीं हुआ करतीं।

 

हादसा तब हुआ

जब एक नब्बे वर्षीय युवा,

राजनीति में सक्रिय

स्वतन्त्रता सेनानी

सच्चा देशभक्त

सर्वगुण सम्पन्न चरित्र

असमय, बेमौत चल बसा

अस्पताल में

दस वर्षों की लम्बी प्रतीक्षा के बाद।

हादसा ! बस उसी दिन हुआ।

 

देश शोक संतप्त।

देश का एक कर्णधार कम हुआ।

हादसे का दर्द

बड़ा गहरा है

देश के दिल में।

क्षतिपूर्ति असम्भव।

और दवा -

 सरकारी अवकाश,

राजकीय शोक, झुके झण्डे

घाट और समाधियां,

गीता, रामायण, बाईबल, कुरान, ग्रंथ साहिब

सब आकाशवाणी और दूरदर्शन पर।

अब हर वर्ष

इस हादसे का दर्द बोलेगा

देश के दिल में

नारों, भाषणों, श्रद्धांजलियों

और शोक संदेशों के साथ।

 

ईश्वर उनकी दिवंगत आत्मा को

शांति देना।