हम सब तो बस बन्दर हैं

नाचते तो सभी हैं

बस

इतना ही पता नहीं लगता

कि डोरी किसके हाथ में है।

मदारी कौन है और बन्दर कौन।

बहुत सी गलतफहमियां रहती हैं मन में।

खूब नाचते हैं हम

यह सोच कर , कि देखों

कैसा नाच नचाया हमने सामने वाले को।

लेकिन बहुत बाद में पता लगता है कि

नाच तो हम ही रहे थे

और सामने वाला तो तमाशबीन था।

किसके इशारे पर

कब कौन नाचता है

और कौन नचाता है पता ही नहीं लगता।

इशारे छोड़िए ,

यहां तो लोग

उंगलियों पर नचा लेते हैं

और नाच भी लेते हैं।

और भक्त लोग कहते हैं

कि डोरी तो उपर वाले के हाथ में है

वही नचाता है

हम सब तो बस बन्दर हैं।