साक्षरता अभियान से लौटती औरतें
लौट रहीं थीं
वे अपने दड़बों में
सिर से पैर तक औरतें।
उनकी मांग में
लाल घना सिंदूर था
एक बड़ी सी
शुद्ध सोने की टिकुली
माथे पर टीका।
बाल गुंथे हुए लाल परांदे में।
नाक में नथनी। कान में झुमके।
गले में हार मालाएं।
कलाईयों पर रंग बिरंगी चूड़ियां।
पैरों में पायल, बिछुए।
और कई कुछ।
कहीं कुछ छूटा नहीं
जो यह न बता सके
कि वे सब, औरतें हैं बस औरतें।
इन सबके उपर
एक लम्बी सी ओढ़नी
जिसमें पीठ पर बंधे
दो एक बच्चे
और एक घूंघट
उनके अस्तित्व को नकारता।
इन सबके बीच
मुट्ठी के किसी कोने में
एक प्रमाणपत्र भी था
“अ” से “ज्ञ” तक
जिससे बच्चे खेल रहे थे।