संदेह की दीवारें
संदेह की दीवारें नहीं होतीं
जो दिखाई दें,
अदृश्य किरचें होती हैं
जो रोपने और काटने वाले
दोनों को ही चुभती हैं।
किन्तु जब दिल में, एक बार
किरचें लग जाती हैं
फिर वे दिखती नहीं,
आदत हो जाती है हमें
उस चुभन की,
आनन्द लेने लगते हैं हम
इस चुभन का।
धीरे-धीरे रिसता है रक्त
गांठ बनती है, मवाद बहता है
जीवन की लय
बाधित होने लगती है।
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यह ठीक है कि किरचें दिखती नहीं
किन्तु जब कुछ टूटा होगा
तो एक बार तो आवाज़ हुई होगी
काश उसे सुना होता ।।।।
तो जीवन
कितना सहज-सरल-सरल होता।