यादों पर दो क्षणिकाएं
तुम्हारी यादें
किसी सुगन्धित पुष्प-सी।
पहले कली-सी कोमल,
फिर फूल बन
मन-उपवन को महकातीं,
भंवरे गुनगुनाते।
हर पत्ती नये भाव में बहती।
और अन्त
एक मुर्झाए फूल-सा
डाली से टूटा,
कब कदमों तले रौंदा गया
पता ही न लगा।
*-*
यादों की गठरी
उलझे धागे,
टूटे बटन,
फ़टी गुदड़िया।
भारी-भरकम
मानों कई ज़िन्दगियों
के उधार का लेखा-जोखा।