मन से मन मिले हैं

यूं तो

मेरा मन करता है

नित्य ही

पूजा-आराधना करुँ।

किन्तु

पूजा के भी

बहुत नियम-विधान हैं

इसलिए

डरती हूं पूजा करने से।

ऐसा नहीं

कि मैं

नियमों का पालन करने में

असमर्थ हूँ

किन्तु जहाँ भाव हों

वहाँ विधान कैसा ?

जहाँ नेह हो

वहां दान कैसा ?

जहाँ भरोसा हो

वहाँ प्रदर्शन कैसा ?

जब

मन से मन मिले हैं

तो बुलावा कैसा ?

जब अन्तर्मन से जुड़े हैं

तो दिनों का निर्धारण कैसा ?