मन के मन्दिर ध्वस्त हुए हैं
मन के मन्दिर ध्वस्त हुए हैं,नव-नव मन्दिर गढ़ते हैं
अरबों-खरबों की बारिश है,धर्म के गढ़ फिर सजते हैं
आज नहीं तो कल होगा धर्मों का कोई नाम नया होगा
आयुधों पर बैठे हम, कैसी मानवता की बातें करते हैं
मन के मन्दिर ध्वस्त हुए हैं,नव-नव मन्दिर गढ़ते हैं
अरबों-खरबों की बारिश है,धर्म के गढ़ फिर सजते हैं
आज नहीं तो कल होगा धर्मों का कोई नाम नया होगा
आयुधों पर बैठे हम, कैसी मानवता की बातें करते हैं