मन उदास क्यों है
कभी-कभी
हम जान ही नहीं पाते
कि मन उदास क्यों है।
और जब
उदास होती हूं,
तो चुप हो जाती हूं अक्सर।
अपने-आप से
भीतर ही भीतर
तर्क-वितर्क करने लगती हूं।
तुम इसे, मेरी
बेबात की नाराज़गी
समझ बैठते हो।
न जाने कब के रूके आंसू
आंखों की कोरों पर आ बैठते हैं।
मन चाहता है
किसी का हाथ
सहला जाये इस अनजाने दर्द को।
लेकिन तुम इसे
मेरा नाराज़गी जताने का
एहसास कराने का
नारीनुमा तरीका मान लेते हो।
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पढ़ लेती हूं
तुम्हारी आंखों में
तुम्हारा नज़रिया,
तुम्हारे चेहरे पर खिंचती रेखाएं,
और तुम्हारी नाराज़गी।
और मैं तुम्हें मनाने लगती हूं।