भोर में
भोर में
चिड़िया अब भी चहकती है
बस हमने सुनना छोड़ दिया है।
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भोर में
रवि प्रतिदिन उदित होता है
बस हमने आंखें खोलकर
देखना छोड़ दिया है।
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भोर में आकाश
रंगों से सराबोर
प्रतिदिन चमकता है
बस हमने
आनन्द लेना छोड़ दिया है।
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भोर में पत्तों पर
बहकती है ओस
गाते हैं भंवरे
तितलियां उड़ती-फ़िरती है
बस हमने अनुभव करना छोड़ दिया है।
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सुप्त होते तारागण
और सूरज को निरखता चांद
अब भी दिखता है
बस हमने समझना छोड़ दिया है।
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रात जब डूबती है
तब भोर उदित होती है
सपनों के साथ,
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बस हमने सपनों के साथ
जीना छोड़ दिया है।