बस आपको गरीबी हटाने की बात नहीं करनी चाहिए।

कितना मुश्किल है

गरीबी पर कुछ लिखना।

डर लगता है

कोई अमीर पढ़ न ले,

और रूष्ट हो जाये मुझसे।

मेरे देश के कितने अमीर

आज भी भीतर से

गरीबी से उलझे-दबे बैठै हैं।

गरीबी की रोटियां निचोड़ रहे हैं।

सोने-चांदी के वर्कों में लिपटा आदमी

अपनी गरीबी की कहानी

बताता है हमें,

रटाता है हमें,

बार-बार सुनाता है हमें,

तब कहीं जाकर

गरीबी की महिमा समझ आती है।

तब कहीं जान पाते हैं,

कौन सड़क पर सोया था,

किसने रातें बिताईं थीं

फुटपाथ पर,

किसने क्या बेचा था

और माफ़ करना,

आज भी बेच रहा है।

और कौन रहा था भूखा

दिनों-दिनों तक।

अभी जब यह आदमी

अपनी गरीबी से ही नहीं

निकल पाया

तो देश की गरीबी को क्या जानेगा।

 

बस आपको

गरीबी हटाने की बात करनी आनी चाहिए।

गरीबी हटाने की बात नहीं करनी चाहिए।