बस ! हार मत मानना
कहते हैं
धरती सोना उगलती है
ये बात वही जानता है
जिसके परिश्रम का स्वेद
धरा ने चखा हो।
गेहूं की लहलहाती बालियां
आकर्षित करती हैं,
सौन्दर्य प्रदर्शित करती हैं,
झूमती हैं, पुकारती हैं
जीवन का सार समझाती हैं ।
पता नहीं कल क्या होगा
मौसम बदलेगा
सोना घर आयेगा
या फिर मिट्टी हो जायेगा
कौन जाने ।
किन्तु
कृषक फिर उठ खड़ा होगा
अपने परिश्रम के स्वेद से
धरा को सींचने के लिए
बस ! हार मत मानना
फल तो मिलकर ही रहेगा
धरा यही समझाती हैं ।