नहीं समझ पाते स्याह सफ़ेद में अन्तर
गिरगिट की तरह
यहां रंग बदलते हैं लोग।
बस,
बात इतनी सी
कि रंग
कोई और चढ़ा होता है
दिखाई और देता है।
समय पर
हम कहां समझ पाते हैं
स्याह-सफ़ेद में अन्तर।
कब कौन
किस रंग से पुता है
हम देख ही नहीं पाते।
कब कौन
किस रंग में आ जाये
हम जान ही नहीं पाते।
अक्सर काले चश्मे चढ़ाकर
सफ़ेदी ढूंढने निकलते हैं।
रंगों से पुती है दुनिया,
कब किसका रंग उतरे,
और किस रंग का परदा चढ़ जाये
हम कहां जान पाते हैं।