जब बजता था डमरू

कहलाते शिव भोले-भाले थे 
पर गरल उन्होंने पिया था
नरमुण्डों की माला पहने,
विषधर उनके आभूषण थे 
भूत-प्रेत-पिशाच संगी-साथी
त्रिशूल हाथ में लिया था
त्रिनेत्र खोल जब बजता था डमरू 
तीनों लोकों के दुष्टों का 
संहार उन्होंने किया था
चन्द्र विराज जटा पर,
भागीरथी को जटा में रोक
विश्व को गंगामयी किया था। 
भांग-धतूरा सेवन करते
भभूत लगाये रहते थे।
जग से क्‍या लेना-देना
सुदूर पर्वत पर रहते थे।
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अद्भुत थे तुम शिव
नहीं जानती 
कितनी कथाएं सत्य हैं
और कितनी कपोल-कल्पित 
किन्तु जो भी हैं बांधती हैं मुझे। 
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तुम्हारी कथाओं से
बस 
तुम्हारा त्रिनेत्र, डमरू 
और त्रिशूल चाहिए मुझे
शेष मैं देख लूंगी ।