चूड़ियां उतार दी मैंने
चूड़ियां उतार दी मैंने, सब कहते हैं पहनने वाली नारी अबला होती है
यह भी कि प्रदर्शन-सजावट के पीछे भागती नारी कहां सबला होती है
न जाने कितनी कहावतें, मुहावरे बुन दिये इस समाज ने हमारे लिये
सहज साज-श्रृंगार भी यहां न जाने क्यों बस उपहास की बात होती है
चूड़ी की हर खनक में अलग भाव होते हैं,कभी आंसू, कभी हास होते हैं
कभी न समझ सका कोई, यहां तो नारी की हर बात उपहास होती है