खेल-कूद क्या होती है

बचपन की

यादों के झरोखे खुल गये,

कितने ही खेल खेलने में

मन ही मन जुट गये।

चलो, आपको सब याद दिलाते हैं।

खेल-कूद क्या होती है,

तुम क्या समझोगे फेसबुक बाबू।

वो चार कंचे जीतना,

बड़ा कंचा हथियाना,

स्टापू में दूसरे के काटे लगाना,

कोक-लाछी-पाकी में पीठ पर धौंस जमाना।

वो गुल्ली-डंडे में गुल्ली उड़ाना,

तेरी-मेरी उंच-नीच पर रोटियां पकाना,

लुका-छिपी में आंख खोलना।

आंख पर पट्टी बांधकर पकड़म-पकड़ाई ,

लंगड़ी टांग का आनन्द लेना।

कक्षा की पिछली सीट पर बैठकर

गिट्टियां बजाना, लट्टू घुमाना ।

कापी के आखिरी पन्ने पर

काटा-ज़ीरों बनाना,

पिट्ठू में पत्थर जमाना ।

पुरानी कापियों के पन्नों के

किश्तियां बनाना और हवाई-ज़हाज उड़ाना।

सांप-सीढ़ी के खेल में 99 से एक पर आना,

और कभी सात से 99 पर जाना।

पोशम-पा भई पोशम-पा में चोर पकड़ना।

व्यापार में ढेर-से रूपये जीतना।

विष-अमृत और रस्सी-टप्पा।

है तो और भी बहुत-कुछ।

किन्तु

खेल-कूद क्या होती है

तुम क्या समझोगे फेसबुक बाबू।