क्यों मैं नीर भरी दुख की बदरी
(कवियत्री महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध रचना की पंक्ति पर आधारित रचना)
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क्यों मैं नीर भरी दुख की बदरी
न मैं न नीर भरी दुख की बदरी
न मैं राधा न गोपी, न तेरी हीर परी
न मैं लैला-मजनूं की पीर भरी।
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जब कोई कहता है
नारी तू महान है, मेरी जान है
पग-पग तेरा सम्मान है
जब मुझे कोई त्याेग, ममता, नेह,
प्यार की मूर्ति या देवी कहता है
तब मैं एक प्रस्तर-सा अनुभव करती हूं।
जब मेरी तुलना सती-सीता-सावित्री,
मीरा, राधा से की जाती है
तो मैं जली-भुनी, त्याज्य, परकीया-सी
अपमानित महसूस करती हूं।
जब दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती से
तुलना की जाती है
तब मैं खिसियानी सी हंसने लगती हूं।
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ढेर सारे अर्थहीन श्लाघा-शब्द
मुझे बेधते हैं, उपहास करते हैं मेरा।
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न मुझे आग में जलना है
न मुझे सूली पर चढ़ना है
न महान बनना है,
बेतुके रिश्तों में न बांध मुझे
मुझे बस अपने मन से जीना है,
अपने मन से मरना है।