कैसा दुर्भाग्य है मेरा

 

कैसा दुर्भाग्य है मेरा

कि जब तक

मेरे साथ दो बैल

और ग़रीबी की रेखा न हो

मुझे कोई पहचानता ही नहीं।

जब तक

मैं असहाय, शोषित न दिखूँ

मुझे कोई किसान

मानता ही नहीं।

मेरी

इस हरी-भरी दुनियाँ में

एक सुख भरा संसार भी है

लहलहाती कृषि

और भरा-पूरा

परिवार भी है।

गुरूर नहीं है मुझे

पर गर्व करता हूँ

कि अन्न उपजाता हूँ

ग्रीष्म-शिशिर सब झेलता हूँ,

आशाओं में जीता हूँ

आशाएँ बांटता हूँ।

दुख-सुख तो

आने-जाने हैं।

अरबों-खरबों के बड़े-बड़े महल

अक्सर भरभराकर गिर जाते हैं,

तो कृषि की

असामयिक आपदा के लिए

हम सदैव तैयार रहते हैं,

हमारे लिए

दान-दया की बात कौन करता है

हम नहीं जानते।

अपने बल पर जीते हैं

श्रम ही हमारा धर्म है

बस इतना ही हम मानते।