कितना मुश्किल होता है

कितना मुश्किल होता है

जब रोटी गोल न पकती है

दूध उफ़नकर बहता है

सब बिखरा-बिखरा रहता है।

 

तब बच्चा दिनभर रोता है

न खाता है न सोता है

मन उखड़ा-उखडा़ रहता है।

 

कितना मुश्किल होता है

जब पैसा पास न होता है

रोज़ नये तकाज़े सुनता

मन सहमा-सहमा रहता है।

 

तब आंखों में रातें कटती हैं

पल-भर काम न होता है

मन हारा-हारा रहता है।

 

कितना मुश्किल होता है,

जब वादा मिलने का करते हैं

पर कह देते हैं भूल गये,

मन तनहा-तनहा रहता है।

 

तब तपता है सावन में जेठ,

आंखों में सागर लहराता है

मन भीगा-भीगा रहता है ।

 

कितना मुश्किल होता है

जब बिजली गुल हो जाती है

रात अंधेरी घबराती है

मन डरा-डरा-सा रहता है।

 

तब तारे टिमटिम करते हैं

चांदी-सी रात चमकती है

मन हरषा-हरषा रहता है।