काश ! पहाड़-सी होती मेरी ज़िन्दगी
काश ! पहाड़-सी होती मेरी ज़िन्दगी
ज़रा-ज़रा सी बात पर
यूं ही
भरभराकर
नहीं गिर जाते ये पहाड़।
अपने अन्त:करण में
असंख्य ज्वालामुखी समेटे
बांटते हैं
नदियों की तरलता
झरनों की शरारत
नहरों का लचीलापन।
कौन कहेगा इन्हें देखकर
कि इतने भाप्रवण होते हैं ये पहाड़।
पहाड़ों की विशालता
अपने सामने
किसी को बौना नहीं करती।
अपने सीने पर बसाये
एक पूरी दुनिया
ज़मीन से उठकर
कितनी सरलता से
छू लेते हैं आकाश को।
बादलों को सहलाते-दुलारते
बिजली-वर्षा-आंधी
सहते-सहते
कमज़ोर नहीं हो जाते यह पहाड़।
आकाश को छूकर
ज़मीन को नहीं भूल जाते ये पहाड़।
ज़रा-ज़रा सी बात पर
सागर की तरह
उफ़न नहीं पड़ते ये पहाड़।
नदियों-नहरों की तरह
अपने तटबन्धों को नहीं तोड़ते।
बार-बार अपना रास्ता नहीं बदलते
नहरों-झीलों-तालाबों की तरह
झट-से लुप्त नहीं हो जाते।
और मावन-मन की तरह
जगह-जगह नहीं भटकते।
अपनी स्थिरता में
अविचल हैं ये पहाड़।
अपने पैरों से रौंद कर भी
रौंद नहीं सकते तुम पहाड़।
पहाड़ों को उजाड़ कर भी
उजाड़ नहीं सकते तुम पहाड़।
पहाड़ की उंचाई
तो शायद
आंख-भर नाप भी लो
लेकिन नहीं जान सकते कभी
कितने गहरे हैं ये पहाड़।
बहुत बड़ी चाहत है मेरी
काश !
पहाड़-सी होती मेरी ज़िन्दगी।