कयामत के दिन चार होते हैं

 

कहीं से सुन लिया है

कयामत के दिन चार होते हैं,

और ज़िन्दगी भी

चार ही दिन की होती है।

तो क्या कयामत और ज़िन्दगी

एक ही बात है?

नहीं, नहीं,

मैं ऐसे डरने वाली नहीं।

लेकिन

कंधा देने वाले भी तो

चार ही होते हैं

और दो-दूनी भी

चार ही होते हैं।

और हां,

बातें करने वाले भी

चार ही लोग होते हैं,

एक है न कहावत

‘‘चार लोग क्या कहेंगे’’।

वैसे मुझे अक्सर

अपनी ही समझ नहीं आती।।

बात कयामत की करने लगी थी

और दो-दूनी चार के

पहाड़े पढ़ने लगी।

ऐसे थोड़े ही होता है।

चलो, कोई बात नहीं।

फिर कयामत की ही बात करते हैं।

सुना है, कोई

कोरोना आया है,

आयातित,

कहर बनकर ढाया है।

पूरी दुनिया को हिलाया है

भारत पर भी उसकी गहन छाया है।

कहते हैं,

उसके साथ

छुपन-छुपाई खेल लो चार दिन,

भाग जायेगा।

तुम अपने घर में बन्द रहो

मैं अपने घर में।

ढूंढ-ढूंढ थक जायेगा,

और अन्त में थककर मर जायेगा।

तब मिलकर करेंगे ज़िन्दगी

और कयामत की बात,

चार दिन की ही तो बात है,

तो क्या हुआ, बहुत हैं

ये भी बीत जायेंगे।