एक बदली सोच के साथ

चौबीसों घंटे चाक-चौबन्द

फेरी वाला, दूध वाला,

राशनवाला,

रोगी वाहन बनी घूम रही।

खाना परोस रही,

रोगियों को अस्पताल ढो रही,

घर में रहो , घर में रहो !!!

कह, सुरक्षा दे रही,

बेघर को घर-घर पहुंचा रही,

आप भूखे पेट

भूखों को भोजन करा रही।

फिर भी

हमारी नाराज़गियां झेल रही

ये हमारी पुलिस कर रही।

पुलिस की गाड़ी की तीखी आवाज़

आज राहत का स्वर दे रही।

गहरी सांस  लेते हैं हम

सुरक्षित हैं हम, सुरक्षित हैं हम।

 

 

सोचती हूं

सोच कैसे बदलती है

क्यों बदलती है सोच।

कभी आपने सोचा है

क्या है आपकी सोच ?

कुछ धारणाएं बनाकर

जीते हैं हम,

जिसे बुरा कहने लगते हैं

बुरा ही कहते हैं हम।

चाहे घर के भीतर हों

या घर के बाहर

चोर तो चोर ही होता है,

यह समझाते हैं हम।

 

 

नाके पर लूटते,

जेबें टटोलते,

अपराधियों के सरगना,

झूठे केस बनाते,

आम आदमी को सताते,

रिश्वतें खाते,

नेताओं की करते चरण-वन्दना।

कितनों से पूछा

आपके साथ कब-कब हुआ ऐसा हादसा ?

उत्तर नहीं में मिला।

तो मैंने कहा

फिर आप क्यो कहते हैं ऐसा।

सब कहते हैं, सब जानते हैं,

बस ,इसीलिए हम भी  कह देते हैं,

और  कहने में  क्या   जाता है ?

 

यह हमारा चरित्र है!!!!!!!

 

न देखी कभी उनकी मज़बूरियां,

न समझी कभी उनकी कहानियां

एक दिन में तो नहीं बदल गया

उनका मिज़ाज़

एक दिन में तो

नहीं बन गये वे अच्छे इंसान।

वे ऐेसे ही थे, वे ऐसे ही हैं।

शायद कभी हुआ होगा

कोई एक हादसा,

जिसकी हमने कहानी बना ली

और वायरल कर दी,

गिरा दिया उनका चरित्र

बिन सोचे-समझे।

 

नमन करती हूं इन्हें ,

कभी समय मिले

तो आप भी स्मरण करना इन्हें ,

 

स्मरण करना इन्हें

एक बदली सोच के साथ