आस लिए जीती हूँ

सपनों में जीती हूँ

सपनों में मरती हूँ

सपनों में उड़ती हूँ

ऐसे ही जीती हूँ।

धरा पर सपने बोती हूँ

गगन में छूती हूँ ।

मन में चाँद-तारे बुनती हूँ।

बादलों-से उड़ जाते हैं,

हवाएँ बहकाती हैं

सहम जाता है मन

पंछी-सा,

पंख कतरे जाते हैं

फिर भी उड़ती हूँ।

लौट धरा पर आती हूँ,

पर गगन की

आस लिए जीती हूँ।