अबला- सबला की बातें अब छोड़ क्यों नहीं देते
शूर्पनखा, सती-सीता-सावित्री, देवी, भवानी की बातें अब हम छोड़ क्यों नहीं देते
कभी आरोप, कभी स्तुति, कभी उपहास, अपने भावों को नया मोड़ क्यों नहीं देते
बातें करते अधिकारों की, मानों बेडि़यों में जकड़ी कोई जन्मों की अपराधी हो
त्याग, तपस्या , बलिदान समर्पण अबला- सबला की बातें अब छोड़ क्यों नहीं देते