जब से मुस्कुराना देखा हमारा

जब से मुस्कुराना देखा हमारा

जाने क्यों आप चिन्तित दिखे

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हमारे उपवन में फूल सुन्दर खिले

तुम्हारी खुशियों पर क्यों पाला पड़ा

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चली थी चाॅंद-तारों को बांध मुट्ठी में मैं

तुम क्यों कोहरे की चादर लेकर चले

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बारिश की बूंदों से आह्लादित था मेरा मन

तुम क्यों आंधी-तूफ़ान लेकर आगे बढ़े

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भाग-दौड़ तो ज़िन्दगी में लगी रहती है

तुम क्यों राहों में कांटे बिछाते चले।

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अब और क्या-क्या बताएॅं तुम्हें

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हमने अपना दर्द छिपा लिया था

झूठी मुस्कुराहटों में

तुम कभी भी तो यह समझ पाये।