उदास है मौसम y

कई दिनों से

उदास-सा है मौसम।

न हॅंसता है,

न मुस्कुराता है,

मानों रोशनी से कतराता है।

बस गहरी चादर ओढ़े

जैसे मुॅंह छुपाकर बैठा है।

दिन-रात का एहसास

कहीं खो गया है,

कभी ओस-से आँसू

ढलकते हैं

कभी कोहरे में सिसकता है

और कभी आँसुओं से

सराबोर हो जाता है।

 

ये हल्की बारिश

ये कंपकंपाती हवाएं

ये बिखरे ओस-कण

लगता है

अब दर्द हुआ है जनवरी को

दिसम्बर के जाने का।