कल से डर-डरकर जीते हैं हम

आज को समझ नहीं पाते

और कल में जीने लगते हैं हम।

कल किसने देखा

कौन रहेगा, कौन मरेगा

कहां जान पाते हैं हम।

कल की चिन्ता में नींद नहीं आती

आज में जाग नहीं पाते हैं हम।

कल के दुख-सुख की चिन्ता करते

आज को पीड़ा से भर लेते हैं हम।

बोये तो फूलों के पौधे थे

पता नहीं फूल आयेंगे या कांटे

चिन्ता में

सर पर हाथ धरे बैठे रहते हैं हम।

धूप खिली है, चमक रही है चांदनी

फूलों से घर महक रहा

नहीं देखते हम।

कल किसी ने न देखा

पर कल से डर-डरकर जीते हैं हम।

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कल किसी ने न देखा

लेकिन कल में ही जी रहे हैं हम।