कभी कुछ नहीं बदलता

एक वर्ष

और गया मेरे जीवन से।

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अथवा

यह कहना शायद

ज़्यादा अच्छा लगेगा,

कि

एक वर्ष

और मिला जीने के लिए।

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जीवन एक रेखा है,

जिस पर हम

बढ़ते हैं,

चलते तो आगे हैं,

पर पता नहीं क्यों,

पीछे मुड़कर

देखने लगते हैं।

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समस्याओं,

उलझनों से जूझते,

बीत रहा था 2020

जैसे रोज़, हर रोज़

प्रतीक्षा करते थे

एक नये वर्ष की,

खटखटाएगा द्वार।

भीतर आकर

सहलायेगा माथा।

न निराश हो,

आ गया हूं अब मैं

सब बदल दूंगा।

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पर मुझे अक्सर लगता है,

कभी कुछ नहीं बदलता।

कुछ हेर-फ़ेर के साथ

ज़िन्दगी, दोहराती है,

बस हमारी समझ का फ़ेर है।