कुछ तो बदल गया है
आजकल
लिखते-लिखते
अक्सर हाथ रुक जाते हैं,
भाव बहक जाते हैं।
शब्द वही हैं
भाषा वही है
पर पता नहीं क्यों
अर्थ बदल जाते हैं।
मीठा बोलते-बोलते
वाणी में न जाने कैसे
कटुता आ जाती है
और शब्द
कहीं दूर भाग जाते हैं।
मैं बदल गई हूॅं या तुम
या यह दुनिया
समझ नहीं पाई,
सब बदले-बदले-से लगते हैं।
प्यार कहो
तो तिरस्कार का एहसास होता है।
अपनापन जताओ तो
दूरियों का भाव आता है,
सम्मान की बात सुनकर
अपमान का एहसास
क्यों आता है।
शब्द वही हैं, भाषा वही है
पर कुछ तो बदल गया है।