सीता की व्यथा
कौन समझ पाया है
सीता के दर्द को।
उर्मिला का दर्द
तो कवियों ने जी लिया
किन्तु सिया का दर्द
बस सिया ने ही जाना।
धरा से जन्मी
धरा में समाई सीता।
क्या नियति रही मेरी
ज़रूर सोचा करती होगी सीता ।
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किसे मिला था श्राप,
और किसे मिला था वरदान,
माध्यम कौन बना,
किसके हाथों
किसकी मुक्ति तय की थी विधाता ने
और किसे बनाया था माध्यम
ज़रूर सोचा करती होगी सीता ।
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क्या रावण के वध का
और कोई मार्ग नहीं मिला
विधाता को
जो उसे ही बलि बनाया।
एक महारानी की
स्वर्ण हिरण की लालसा
क्या इतना बड़ा अपराध था
जो उसके चरित्र को खा गया।
सब लक्ष्मण रेखा-उल्लंघन
की ही बात करते हैं,
सीता का भाव किसने जाना।
लक्ष्मण रेखा के आदेश से बड़ा था
द्वार पर आये साधु का सम्मान
यह किसी ने न समझा।
साधु के सम्मान की भावना
उसके जीवन का
कलंक कैसे बनकर रह गया,
ज़रूर सोचा करती होगी सीता ।
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रावण कौन था, क्यों श्रापित था
क्या जानती थी सीता।
शायद नहीं जानती थी सीता।
सीता बस इतना जानती थी
कि वह
अशोक वाटिका में सुरक्षित थी
रावण की सेनानियों के बीच।
कभी अशोक वाटिका से
बचा लिया गया मुझे
मेरे राम द्वारा
तो क्या मेरा भविष्य इतना अनिश्चित होगा,
क्या कभी सोचा करती थी सीता
शायद नहीं सोचा करती थी इतना सीता।
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क्या सोचा करती थी सीता
कि एक महापण्डित
महाज्ञानी के कारावास में रहने पर
उसे देनी होगी
अग्नि-परीक्षा अपने चरित्र की।
शायद नहीं सोचा करती थी सीता।
क्योंकि यह परीक्षा
केवल उसकी नहीं थी
थी उसकी भी
जिससे ज्ञान लिया था लक्ष्मण ने
मृत्यु के द्वार पर खड़े महा-महा ज्ञानी से।
विधाता ने क्यों रचा यह खेल
क्यों उसे ही माध्यम बनाया
कभी न समझ पाई होगी सीता।
न जाने किन जन्मों के
वरदान, श्राप और अभिशाप से
लिखी गई थी उसकी कथा
कहाॅं समझ पाई होगी सीता।
कथा बताती है
कि राजा ने अकाल में चलाया था हल
और पाया था एक घट
जिसमें कन्या थी
और वह थी सीता।
घट में रखकर
धरती के भीतर
कौन छोड़ गया था उसे
क्या परित्यक्त बालिका थी वह,
सोचती तो ज़रूर होगी सीता
किन्तु कभी समझ न पाई होगी सीता।
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अग्नि में समाकर
अग्नि से निकलकर
पवित्र होकर भी
कहाॅं बन पाई
राजमहलों की राजरानी सीता।
अपना अपराध
कहाॅं समझ पाई होगी सीता।
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लक्ष्मण के साथ
महलों से निकलकर
अयोध्या की सीमा पर छोड़ दी गई
नितान्त अकेली, विस्थापित
उदर में लिए राज-अंश
पद-विच्युत,
क्या कुछ समझ पाई होगी सीता
कहाॅं कुछ समझ पाई होगी सीता।
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कैसे पहुॅंची होगी किसी सन्त के आश्रम
कैसे हुई होगी देखभाल
महलों से निष्कासित
राजकुमारों को वन में जन्म देकर
वनवासिनी का जीवन जीते
मैं बनी ही क्यों कभी रानी
ज़रूर सोचती होगी सीता
किन्तु कभी कुछ समझ न पाई होगी सीता।
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कितने वर्ष रही सन्तों के आश्रम में
क्या जीवन रहा होगा
क्या स्मृतियाॅं रही होंगी विगत की
शायद सब सोचती होगी सीता
क्यों हुआ मेरे ही साथ ऐसा
कहाॅं समझ पाई होगी सीता।
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तेरह वर्ष वन में काटे
एक काटा
अशोक वाटिका में,
चाहकर भी स्मृतियों में
नहीं आ पाते थे
राजमहल में काटे सुखद दिन
कितने दिन थे, कितना वर्ष
कहाॅं रह पाईं होंगी
उसके मन में मधुर स्मृतियाॅं।
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कहते हैं
उसके पति एकपत्नीव्रता रहे,
मर्यादा पुरुषोत्तम थे वे,
किन्तु
इससे उसे क्या मिला भला जीवन में
उसके बिना भी तो
उनका जीवन निर्बाध चला
फिर वह आई ही क्यों थी उस जीवन में
ज़रूर सोचती होगी सीता।
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चक्रवर्ती सम्राट बनने में भी
नहीं बाधा आई उसकी अनुपस्थिति।
जहाॅं मूर्ति से
एक राजा
चक्रवर्ती राजा बन सकता था
तो आवश्यकता ही कहाॅं थी महारानी की
और क्यों थी ,
ज़रूर सोचा करती होगी सीता।
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ज़रूर सोचा करती होगी सीता
अपने इस दुर्भाग्य पर
उसके पुत्र रामकथा तो जानते थे
किन्तु नहीं जानते थे
कथा के पीछे की कथा।
वे जानते थे
तो केवल राजा राम का प्रताप
न्याय, पितृ-भक्त, वचनों के पालक
एवं मर्यादाओं की बात।
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वे नहीं जानते थे
किसी महारानी सीता को
चरित्र-लांछित सीता को,
अग्नि-परीक्षा देकर भी
राजमहलों से
विस्थापित हुई सीता को।
नितान्त अकेली वन में छोड़ दी गई
किसी सीता को।
इतनी बड़ी कथा को
कैसे समझा सकती थी
अपने पुत्रों को सीता
नहीं समझा सकती थी सीता।
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अश्वमेध का अश्व जिसे
राजाओं के पास,
राज्यों में घूमना था
वाल्मीकि आश्रम कैसे पहुॅंच गया
और उसके पुत्रों ने
उस अश्व को रोककर
युद्ध क्यों किया।
क्यों विजित हुए वे
तीनों भाईयों से,
कि राम को आना पड़ा ।
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जीवन के पिछले सारे अध्याय
बन्द कर चुकी थी सीता।
वह न अतीत में थी
न वर्तमान में
न भविष्य को लेकर
आशान्वित रही होगी
वनदेवी के रूप में
जीवन व्यतीत करती हुई सीता।
और इस नवीन अध्याय की तो
कल्पना भी नहीं की होगी
न समझ सकी होगी इसे सीता।
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कैसे समझ सकती थी सीता
कि यह उसके जीवन के पटाक्षेप का
अध्याय लिखा जा रहा था
कहाॅं समझ सकती थी सीता।
जीवन की इस एक नई आंधी के बारे में
कभी सोच भी नहीं सकती थी सीता।
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पवित्रता तो अभी भी दांव पर थी।
चाहे कारागार में रही
अथवा वनवासिनी
प्रमाण तो चहिए ही था।
कैसे प्रमाणित कर सकती थी सीता।
धरा से निकली, धरा में समा गई सीता।
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इससे तो
अशोक वाटिका में ही रह जाती
तो अपमानित तो न होती सीता
इतना तो ज़रूर सोचती होगी सीता