शादी का लड्डू

हमारे बड़े-बुज़ुर्ग 

बहुत कुछ कह जाते थे।

यह पता नहीं

कि वे आपबीती कहते थे

यह जग-देखी।

किन्तु उनका काम कहना था

और हमारा

सुनना और समझना।

हम जानते हैं

यह मनोविज्ञान

कि जिस कार्य के लिए

जितना ही मना किया जाये

उसे करने की ललक

उतनी ही बढ़ती है।

कहा था न

कि शादी का लड्डू जो खाये

वह भी पछताये

और जो न खाये

वह भी पछताये।

अब समझ-समझ की

समझ-समझ की बात थी।

सोचा

जब पछताना ही है तो

खाकर ही पछताया जाये।

आपकी क्या राय है।