सावन में माॅं के ऑंगन में

सावन में मॉं के ऑंगन में

नेह बरसता था

भीग-भीग जाते थे हम।

बूॅंदों को हाथों में थामे

खेल-खेल में

मॉं का ऑंचल

भिगो जाते थे हम।

मॉं पल्लू छिटकाकर

झाड़ देती थीं बूॅंदों को

मॉं की मीठी-सी झिड़की से

सराबोर हो जाते थे हम।

तारों पर लटकी बूॅंदों को

चाट-चाट पी जाते थे हम।

भीगी चिड़ियॉं

पानी से चोंच लड़ातीं,

पंख छिटक-छिटक कर

बूॅंदें बिखेरतीं

उनकी इस हरकत से

हॅंस-हॅंस

लोट-पोट हो जाते थे हम।

चिड़ियों के पीछे-पीछे भागें,

उन्हें सतायें

न दाना खाने दें,

न पानी पीने दें,

मॉं से डॉंट खाकर

सारा घर गीला कर

छुप जाते थे हम।

मॉं पकड़-पकड़कर बाल सुखाती

उसकी गोदी में

सिर रखकर सो जाते थे हम।