रोटियाॅं यूॅं ही नहीं सिंकती

रोटियाॅं यूॅं ही नहीं सिंकती

कहीं आग सुलगती है

कहीं लकड़ी भभकती है

और कहीं

भीतर ही भीतर

लौ जलती है।

जब जलती आग

राख हो जाये

तो दूध,

जो सदा उफ़नकर

फैलने की आदत रखता है

वह भी

सिमट-सिमट जाता है,

सबका स्वभाव बदल जाता है।

आग

भीतर जले है या बाहर

सुलगती भी है

और राख बनकर

राख भी कर जाती है।