महिलाओं का सम्मान

जब मैं महिलाओं के सम्मान में कोई आलेख अथवा रचना पढ़ती हूं तो मेरा मन गद्गद् हो उठता है। कितना बता नहीं सकती। हमारा समाज महिलाओं के संस्कारों, संस्कृति, उनकी सुरक्षा, पवित्रता और ऐसे ही कितने शब्द जो मुझे अभी स्मरण नहीं आ रहे, मेरा शब्दकोष संकुचित हो गया है, मेरे स्मृति-कक्ष में उभर आते हैं और मैं आनन्दित होने लगती हूं।

आप जानना चाहेंगे और न भी जानना चाहें तो भी मैं बताना चाहूंगी कि आज मेरा मन इतना आनन्दित क्यों है।

आज एक परम मित्र लेखक महोदय का ऐसा ही एक आलेख अथवा एक संक्षिप्त टिप्पणी पढ़ने के लिए मिली जो महिलाओं के बारे में बहुत विचारात्मक एवं उनके प्रति चिन्ता करते हुए लिखी गई थी। अब मैं तो मैं हूं, सीधी बात तो समझ ही नहीं आती।

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उनका कथन है

नदियों अथवा पवित्र कुंड़ या सरोवरों पर स्नान के समय अपने परिवार की महिलाओं को पूरे वस्त्र के साथ स्नान करने हेतु कहें। महिलाएं स्वयं इस बात का संज्ञान लें और कम वस्त्र नहींए पूरे वस्त्र के साथ स्नान करें। अब सरकार या सामाजिक संस्थाओं द्वारा वस्त्र बदलने के लिए लगभग हर जगह सुविधाएं दी गई हैं। उनका उपयोग करें।

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दुर्भाग्यवश ही कह सकती हूं, मैं कुछ समय पूर्व ही दो बार हरिद्वार गई। दोनों ही बार एक तो शनिवार अथवा रविवार था और साथ ही एक बार अमावस्या थी और दूसरी बार गंगा-दशहरा। अर्थात भीड़ ही भीड़, लाखों लोग। पहली बार हमने अपने गंतव्य से बहुत दूर गाड़ी पार्क कर दी जिस कारण हमें हर की पौड़ी पर पैदल ही बहुत  चलना पड़ा। मुख्य स्थल जहां स्नान की व्यवस्था है, वहां हमारा जाना हुआ। हम लोग वहां लगभग एक घंटा अथवा उससे भी अधिक समय रहे। मैंने किसी भी महिला को निर्वस्त्र अथवा कम वस्त्रों में स्नान करते नहीं देखा। सभी महिलाएं पूरे वस्त्रों में गिन कर कुछ डुबकियां लगातीं थीं और बाहर आ जाती थीं, प्रायः साड़ी पहने महिलाएं केवल साड़ी फैलाकर, झाड़कर हवा ले रही थीं न कि वस्त्र उतार रही थीं अथवा खुले में बदल रही थीं। अथवा वे अपनी गाड़ी में आकर वस़्त्र परिवर्तन कर रही थीं। पूरी हर की पौड़ी तक जो न जाने कितने मीलों तक फैली है मुझे केवल दो स्थान दिखे महिलाओं के लिए कपड़े बदलने के लिए। 

सम्भव है मेरे भीतर भारतीय संस्कृति, परम्पराओं की समझ का अभाव हो, किन्तु गंगा में स्नान विशेषकर, महिलाओं का , मुझे कभी भी समझ नहीं आया। गंगा किनारे अस्थियां प्रवाहित हो रही थीं, लोग पिंड-दान करवा रहे थे, पूजा-सामग्री जल में तिरोहित हो रही थी, और न जाने क्या-क्या। मटमैला जल था, उसमें स्नान प्रक्रिया चल रही थी।

लौटती हूं मुख्य विषय पर।

 किन्तु पुरुष, पूर्ण नग्न होकर ही जल में उतर रहे थे और बाहर आकर साथी से तौलिया मांगकर फैलाकर लपेट रहे थे। वे जल में निरन्तर किलोल कर रहे थे। मैं क्षमा प्रार्थी हूं कि ऐसी भाषा लिख रही हूं किन्तु यही शाश्वत सत्य है कि पुरुष कभी भी सामाजिक, पारिवारिक अथवा कहीं भी कोई संकोच नहीं करते। इसमें कोई संदेह नहीं कि महिलाएं आधुनिक वेशभूषा पहनने लगी हैं, देह प्रदर्शनीय वस्त्र। किन्तु अकारण ही केवल लिखने के लिए लिख देना कदापि शोभा नहीं देता।