मेरी ज़िन्दगी की हकीकत
क्या करोगे
मेरी ज़िन्दगी की हकीकत जानकर।
कोई कहानी,
कोई उपन्यास लिखना चाहोगे।
नहीं लिख पाओगे
बहुत उलझ जाओगे
इतने कथानक, इतनी घटनाएॅं
न जाने कितने जन्मों के किस्से
कहाॅं तक पढ़ पाओगे।
एक के ऊपर एक शब्द
एक के ऊपर एक कथा
नहीं जोड़-तोड़ पाओगे।
कभी देखा है
जब कलम की स्याही
चुक जाती है
तो हम बार-बार
घसीटते हैं उसे,
शायद लिख ले, लिख ले,
कोरा पृष्ठ फटने लगता है
उस घसीटने से,
फिर अचानक ही
कलम से ढेर-सी स्याही छूट जाती है,
सब काला,नीला, हरा, लाल
हो जाता है
और मेरी कहानी पूरी हो जाती है।
ओ नादान!
न समझ पाओगे तुम
इन किस्सों को।
न उलझो मुझसे।
इसलिए
रहने दो मेरी ज़िन्दगी की हकीकत
मेरे ही पास।