बरसात की एक शाम
बरसात की तो हर शाम ही सुहानी होती है किन्तु कोई-कोई यादों में बसी रह जाती है। और शिमला की बरसात का तो कहना ही क्या, वो कहते हैं न बिन बादल बरसात।
शिमला में सांय माल रोड पर घूमने का हर स्थानीय निवासी को चस्का लगा हुआ होता था। आफ़िस से निकलकर घर जाने से पहले माल रोड के चार-पांच चक्कर तो लगा ही लेते थे। स्कैंडल प्वाईंट से शेरे पंजाब तक। भारी भीड़ किन्तु मज़ाल है कोई किसी से टकरा जाये अथवा कोई यह कहे कि देखो कैसे घूम रहे हैं। और चलते-चलते बालज़ीस का कोण या गरमागरम गुलाबजामुन खाने का आनन्द ही अलग होता था।
उस दिन संध्या समय अचानक मूसलाधार बरसात होने लगी किन्तु हम ठहरे देसी, तेज़ बरसात में बिना छाता ही चलती रहीं हम पांच सखियाँ। सर से पैर तक भीगती हुईं। सीधे बालज़ीस के आगे जाकर रुकीं और उसे फ़टाफ़ट पांच प्लेट गरम गुलाबजामुन का आदेश दिया। वहाँ पहले से चार लड़के खड़े थे, उन्होंने भी गुलाबजामुन का आर्डर दिया था किन्तु दुकानदार ने हमें पहले दे दिये जिससे वे कुछ नाराज़ तो हुए किन्तु बोले कुछ नहीं। उनके हाथ में भी प्लेटें आ चुकी थीं किन्तु वे हमें ही देखे जा रहे थे। हम पांचों ने आंखों में इशारा किया और एक-एक टुकड़ा खाते ही मुँह बनाया और ज़ोर से बोलीं ‘‘हाय! बिल्कुल ठण्डे !!’’ हमें देखते हुए और हमारी बात सुनकर उनमें से तीन ने पूरा-पूरा गुलाबजामुन ही मुँह में डाल लिया और चिल्लाने लगे अरे, इतना गर्म, मुँह जल गया !! पानी, पानी!! हमारा हँस-हँसकर बुरा हाल।