फटी चादर

एक बड़ी पुरानी कहावत है

जितनी चादर हो

उतने ही पैर पसारने चाहिए।

नई बात यह कि

अपने पैरों को देखो

बड़े हो गये हों

तो नई चादर लेने की औक़ात बनाओ।

कब तक

पुरानी चादर

और पुराने मुहावरों को

जीते रहोगे।

ज़िन्दगी ऐसे नहीं चलती।

 

लेकिन उस दिन का क्या करें

जब चादर

न छोटी थी, न बड़ी

पता नहीं

कहाॅं-कहाॅं से फ़टी थी।

 

अपने लिए,

हम अपने-आप,

चादर कहाॅं खरीद पाते हैं

या तो पूर्वजों से मिलती है

उस पर पैर पसारते रहते हैं

अथवा हमारी अगली पीढ़ी

हमें चादर उढ़ा जाती है

जो हमारी पहुॅंच से

बहुत बाहर होती है।

 

फिर चादर में 

पैर आते हैं या नहीं

छोटी है या बड़ी

फटी है या रेशमी

कोई फ़र्क नहीं पड़ता यारो।

बस एक चादर होती है।