निर्जला-एकादशी

मुझे कुछ बातें समझ नहीं आतीं, आपको आतीं हो तो मुझे अवश्य बताईएगा।

निर्जला एकादशी के दिन जगह-जगह छबील लगी थी।

पानी में कच्चा दूध, रूह-अफ़जाह और बर्फ़ से ठण्डा कर आने-जाने वालों को रोक-रोक कर यह जल पिलाया जा रहा था। अधिकांश महिलाएॅं और छोटे-छोटे बच्चे ही वहाॅं पर सेवा-भाव से काम कर रहे थे। गर्मी इतनी कि लगभग सभी आने-जाने वाले पानी पी रहे थे। अच्छा लगा।

किन्तु आज ही सभी लोग निर्जलाएकादशी के कारण छबील लगा रहे थे। क्योंकि यह पुण्य का कार्य माना जाता है, कि वास्तव में प्यासे लोगों को पानी पिलाने की सोच। यह भी देखने में आया कि दस-दस, बीस-बीस गज़ की दूरी पर छबील लगी हुई थीं। प्रातः 9 बजे से चल रही छबील 12 बजे तक सिमटने लगीं और जब सूर्य आकाश पर आकर तपने लगा तब तक अधिकांश छबील सिमटकर जा चुकी थीं। क्या ऐसा नहीं कर सकते थे कि आपस में तालमेल कर लेते और एक छबील समाप्त होने पर दूसरी फिर तीसरी और इस तरह लगाते तो आने-जाने वाले लोगों को शाम तक ठण्डा पानी मिल पाता।

यह भी ज्ञात हुआ कि आज के दिन पंखी, खरबूजे और घड़ों का दान किया जाता है जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है। अर्थात् यह दान भी जरूरतमंदों के लिए नहीं, अपने पुण्य के लिए करना है। पहले यह दान ज़रूरतमंदों को दिया जाता था अब मन्दिरों में देने की प्रथा बन गई है।

इतनी गर्मी में भी मन्दिरों के आगे भारी भीड़ देखने को मिली। और अधिकांश महिलाएॅं अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ वहाॅं लाईन में लगी हुई थीं। मन्दिरों में पंखियों, घड़ों और खरबूजों के ढेर लग रहे थे।

मुझे लिखने की आवश्यकता नहीं है कि वहाॅं इनका क्या उपयोग हुआ होगा।

 

निर्जला एकादशी के दिन छबील लगाना और दान देना पुण्य का काम है किन्तु इतनी गर्मी में लोग तो हर रोज़ ही गर्मी और प्यास  से त्रस्त हैं। जो लोग दान एकत्र करके केवल एक दिन के लिए छबील लगाते हैं वे क्या कहीं मार्गों पर स्थायी रूप से आने जाने वालों के लिए पीने के पानी की स्थायी व्यवस्था नहीं कर सकते। कर तो सकते हैं किन्तु क्यों करें और पहल कौन करे। मुझे तो आज करना था क्योंकि इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।

मैं फिर भटक कर गूगल पर चली गई। वहाॅं से प्राप्त ज्ञान भी आपसे बाॅंटना चाहूॅंगी।

यह सारे कथन व्यास जी के हैं, मेरे नहीं।

निर्जला एकादशी पर गरीबों को दान देने, पानी पिलाने एवं जल भरा मटका दान करने से आपके पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है, इससे मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं, जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति भी होती है।

विष्णु पुराण के अनुसार ज्येष्ठ के महीने में सूर्य की बढ़ती गर्मी से हर जीव परेशान हो जाते हैं। ऐसे में अगर आप किसी प्यासे को जल भरे मटके का दान देते हैं, तो उसकी आत्मा जल पीकर तृप्त हो जाती है और उस मनुष्य के मुख से निकली हुई कामना ईश्वर की वाणी होती है।

जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में एकादशी को उपवास करके दान देंगे, वे परमपद को प्राप्त होंगे। जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, ये ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होने पर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं।

 जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, यह पाप भोजन करता है। इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प्राप्त होता है।

 जिन्होंने शम, दम और दान में प्रवृत्त हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियों को और आने वाली सौ पीढ़ियों को भगवान् वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है। निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिये। जो श्रेष्ठ एवं सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है।

इसलिए आपसे अनुरोध है कि इन प्राप्तियों के लिए आप भी निर्जला एकादशी का व्रत, दान आदि अवश्य करें।