मेरे प्रिय हिन्दी साहित्यकार : हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के साहित्य से मैं बहुत गहरे तक जुड़ी हुई हूं। अपने अध्ययन काल में अनेक कवि, लेखक, उपन्यासकार, इतिहासकार रहे जिनकी पुस्तकों का मैंने अध्ययन किया किन्तु हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का लेखन मुझे बहुत गहरे तक जोड़ता रहा है।
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक, उपन्यासकार थे। कलाओं के प्रति इनके दृष्टिकोण ने प्राचीन एवं मध्यकालीन हिन्दी साहित्य के अध्ययन के नवीन द्वार उन्मुक्त किये। साहित्य की प्रत्येक विधा में वे पारंगत थे। वे हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत और बाङ्ला भाषाओं के विद्वान थे।
द्विवेदीजी ने शांति निकेतन में बीस वर्ष तक अध्यापन कार्य किया। वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर और अध्यक्ष, उपरान्त पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हिंदी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष, पुनः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष बने। उनकी
विश्वविद्यालय के रेक्टर पद पर नियुक्ति हुई। कुछ समय के लिए हिन्दी का ऐतिहासिक व्याकरण योजना के निदेशक भी बने। कालान्तर में उत्तर प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी के अध्यक्ष तथा 1972 से आजीवन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के उपाध्यक्ष पद पर रहे। 1973 में आलोक पर्व निबन्ध संग्रह के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।1957 में पद्मभूषण की उपाधि से सम्मानित किये गये। 1997 में इनके चित्र का डाक टिकट भी जारी हुआ।
हिन्दी साहित्य पर इनका लेखन पठनीय एवं अप्रतिम है। मुझे इनकी संस्कृतनिष्ठ भाषा बहुत आकर्षित एवं प्रभावित करती रही है। हिन्दी साहित्य को इन्होंने एक नई पहचान दी। रामचन्द्र शुक्ल के बाद इनकी हिन्दी साहित्य एवं इतिहास पर लिखी गई पुस्तकों ने हिन्दी साहित्य के पाठकों को एक नवीन, चिन्तनपूर्ण दृष्टि प्रदान की। मध्यकालीन हिन्दी साहित्य एवं प्राचीन एवं अर्चाचीन साहित्य पर इनकी आलोचनात्मक पुस्तकें एक नवीन चिन्तन प्रदान करती हैं। सांस्कृतिक एवं पौराणिक पृष्ठभूमि पर रचित उपन्यास गहन चिन्तन की ओर ले जाते हैं। विषय विविधता इनके लेखन की विशेषता रही है। अगस्त 1981 में आचार्य द्विवेदी की उपलब्ध सम्पूर्ण रचनाओं का संकलन 11 खंडों में हजारीप्रसाद द्विवेदी ग्रन्थावली के नाम से प्रकाशित हुआ।